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जैनधर्मसिंधु.
नड्यो ॥ लोने संचय धननो करे, माखी जिम महू लें फिरे ॥ २८ ॥ लोने धन नवि खरचे धणी, वागुल जव पामशे कां फणी ॥ लोने देश विदेशें जाय, लोने नरनारी फलाय ॥ २० ॥ पुण्य होय तो पामें वली, बेठा धर्म करो मन रली ॥ क्रोध लो जनो बांकोपास, श्रावक धर्म करी उल्लास ॥ ३० ॥ लोने नाना मोटो जीव, लोजे कार्य करे सदीव || लोन तपी गति ढंको सार, तीर्थयात्र करो उदार ॥ ३१ ॥ ढार पांत्रीसा वरश मकार, वागमदेश वडो सार ॥ देवदर्शन करोसुखकार, पामो जिम जव सायर पार ॥ ३२ ॥ क्रोध मान माया नो संग, वली aisो लोन प्रसंग ॥ कहे कवि सुणो पंक्ति राय, कांति विजय हरखे गुण गाय ॥ ३३ ॥
॥ अथ श्रीमणिजीनो बंद प्रारंभः ॥ ॥ श्री मणि सदा समरो, तर बीचमें ध्यान खं धरो ॥ जपियां जय जयकार करो, जजियां सहु नित्य जंकार जरो ॥ १ ॥ जेकुशल करे नामज लियां, आनंद करे देव याश कियां ॥ सौनाग्य वधे जग सहस्सगुणो, दिलसेव्यादे प्रभु जश डुगुणो ॥ २ ॥
रिय सह लगा जागे, विरुयावैरी जन पाय लागे ॥ संकट शोक वियोग हरे, जंण वेला आय सहाय करे ॥ ३ ॥ छूत जयंकर सहु जागे, जह योगी सायणी नवि लागे ॥ वाय चोराशी जाया