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________________ ५२४ जैनधर्मसिंधु. भैरव तुं किंन्नर, तुं जग महादीवो ॥ तुंज० ॥ काम कल्पतरु धेनु, तुं प्रभु चिरंजीवो || जयदे० ॥ ५ ॥ तपगपति सुरि, ध्यावे तुऊ ध्यानं ॥ ध्यावे० ॥ मणि जड़ जड़कर, आशा विसरामं ॥ जयदे० ॥ ६ ॥ संवत् अढारहसें पांसव, श्री माधव मास ॥ श्रीमा० ॥ दीपविजय कविरायनी, पूरो सहु यास ॥ जयदे० ॥ ॥ ७ ॥ इति श्रीमणिजइजीनी आरति ॥ ॥ अथ ज्वर ( ताव ) बंद ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ ॐ नमो आनंद पुरनगरे, अजयपाल राजान ॥ माता श्रजया जनमियो, ज्वर तुं कृपा निधान ॥ १ ॥ सातरूप शक्ति हुई, करवा खेल जगत ॥ नाम धरा वे जूजुवा पसख्यो तुं इत्त उत्त ॥ २ ॥ एकांतरो बेयांतेरो, ऋइयो चोथो ताम, शीत उष्ण विषम ज्वरो, ए साते तुज नाम ॥ ३ ॥ ॥ छंद ॥ ॥ ए साते तुज नाम सुरंगा, जपता पूरे को मि उमंगा ॥ तें नाम्या जे जालिम जूगां, जगमां व्यापी तुज जस गंगा ॥ ४ ॥ तुज श्रागें नूपति सब रंका, त्रिभूवनमां वाजे तुज मंका ॥ माने नहिं तु केहनी शंका, तूठो पे सोवन टंका ॥ ५ ॥ साधक सिद्ध तणा मद मोडे, असुर सुरा तुज आागल दोडे ॥ कुछ धीना कंधर तोडे, नमीचाले तेहने तुं बोडे ॥ ६॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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