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शष्ठमपरिछेद.
५१ए चक्र चालन, जटिक कालन, गर्व गालन, गंजनी ॥ विरदां विदारन, महिष मारन, दलिज दारन, जंज नी ॥ चरचिये चंडी, खलांखमी, मदन मंडी मलक ती ॥ जजियें ॥ ॥ कविकरे अष्टक, टले कष्टक विसन पृष्टक कजियें ॥ मणिमौलि मंडित, पढेपंमि त, ए अखंमित पेखियें ॥ दयासुर देवी, सुरांसेवी, नित नमेवी, जगपती॥नजियें॥ ए॥इति समाप्त ॥ ॥अथ क्रोध मान माया लोननो बंद ॥
॥ चोपाई॥ ॥ पहेलां सरस्वती, लीजे नाम, चोवीश जिनने करुं प्रणाम ॥ क्रोध मान मायाने लोन, नाखं अर्थ करी थिर थोज ॥ क्रोधे तप कीधो परजले, क्रोधे कर्म घणेरां फले ॥ क्रोधे करणी रूडी जाय, क्रोधे समतारस सूकाय ॥२॥ क्रोध तणे वश कांश नवि गणे, मातपिता गुरुने अवगणे ॥ क्रोधे पंचेंडि य मुंजाय, क्रोधे फेर घणेरो थाय ॥ ३ ॥ क्रोधे विकथा वाधे घणी, क्रोधे कर्म निकाचित नणी ॥ क्रोधे बे बंधव आंफले, क्रोधे जरत बालुबल लडे ॥ ॥४॥ क्रोधे श्रचंकारी जटा, क्रोधे परशुं करे खटप टा ॥क्रोधे अरजुन मालि नाम, महावीर स्वामी किधो सुगम ॥ ५॥ क्रोधे कूड कपट केलवें, क्रोधे लुमि गति मेलवे ॥ क्रोधे फरससम फरसी फेरवे, क्रोधे सुजुम दल मेलवे ॥ ६॥ क्रोधे ब्रह्मदत्त थयो