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जैनधर्मसिंधु. रंजा जलकती ॥ नजियें नवानी, जगत जानी, राज रानी सरस्वती ॥ १॥ सुरराज सेवित, देख दैवत, पद्म पेखत, श्रासनं ॥ सुखदाय सूरति, माय मूरति, पुःख पुरति निवारनं ॥ त्रिहु लोक नारक, विघ्न वारक, धरा धारक, धरपती ॥ नजियें ॥२॥ केवियां कोपित, लोन लोपित, अवनि उपित, ईश्व री ॥ शंतोष धारन, विघन वारन, मदन मारन, महेश्वरी॥खल दहां खंगन, बिजबंडन, पुष्ट दमन, नरपती॥ नजियें ॥३॥ शिव शक्ति साची, रंग राची, अज अजाची, योगिनी॥मद करन मत्ता तरन तत्ता, धत्त धत्ताध्वं गिनी ॥ जिनाणपंति, मन रमति,धवल दंति, वरमती ॥ नजियें॥४॥ जलथल जनानी पव न पानी, मति बखानी, वीजली ॥ गिरवरां गहन, वाघ वाहन, सर्प साहन, शीतली ॥ हदहांक धारी, हत हजारी, धनुष धारी, जगवती॥ नजियें॥५॥ कणणाट जबरि, विधिम धपवरि, रिरिरिरधर,खजि ये॥धिधिधौं किधौं, गमदि घिधिक धिरतं, घिधिक धौंग मदी गजियें ॥ झांकिौंनौं रुरुरु मतियां त्तत्तकि त्रांत्रां दमकती॥ नजियें ॥६॥रिरि रमकि रमि रिमि, फिकिम किमि किमि उमकि उम पग रञ्चि यें ॥ घम घमकि घम घम ग्रहणिक ग्रहणि, गमश्र ति अमग नृत्ति मचियें ॥ तत थेश्य तांनन, मात मानन, अचल थानन दरसती ॥ नजियें ॥७॥चव