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जैनधर्मसिंधु.
पार्श्व अक्षर जपतै ॥ नूतनें प्रेत कोटिंग व्यंतर सुरा उपसमै ॥ वार इकवीस गुणंतें ॥ ५१ ॥ ( उं० ) शुद्धरा रोग सोगा जरा जंतनें ॥ ताव एकांतरा त्ततै ॥ गर्भबंधन ब्रणं सर्पविलू विषं ॥ चालिका वालमेवा ऊतै ॥ ५२ ॥ ( जं ) साइणी माइणी रोहणी रंकणी | फोटका मोटका दोषहुंतें ॥ दाढ जंदरतणी कोल नोला ती ॥ खान सीयाल विक रालदंतें ॥ ५३ ॥ ( ं) धरणेंद्र पदमावती समर सोनावती ॥ वाट आघाट अटवी अटतै ॥ लखमी लीला मिलै सुजस वेला वलै ॥ सयल श्रास्या फलै मन हसंतें ॥ ५४ ॥ ( जं० ॥ अष्टमहाजय हरै कान पीमा टलै ॥ ऊतरै सूल सीसगजांते ॥ वदत वर प्रीतसुं प्रीति विमला प्रभू ॥ श्रीपास जिए नाम राम मंतै ॥ २५ ॥ ( जं जितु ) इति श्रीगोडी पार्श्वनाथ जी वृद्ध स्तवन समाप्तम् ॥
॥ अथ श्रीजीमगंजन पार्श्वनाथ बंद ॥ ॥ जुजंगी छंदनी चाल ॥
॥ वारु विश्वमां देश काशी बिराजे, जिहां जान्ह वी नीर गंजीर गाजे ॥ पुरी नाम वाराणसी तिहां प्रसिद्धि, शोना स्वर्गनी जिणे उलाली लीधी ॥ १ ॥ घं शुं वखाणे कवि घाट तेहनो, सहु चित्त चाहे जोवा रूप जेनो ॥ धराधीश तिहां खङ्गधारी धरा ने पाले, प्रेमशुं अश्वसेना निधाने ॥ २ ॥ वामा तेह