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शष्ठमपरिवेद. पलाणे नीलक्ष्य ॥ नीलो थक्ष असवार ॥ मारग चूकामानवी ॥ बाट दिखावण हार ॥४१॥ (ढास) बरण अढार तणो लहै जोग ॥ विघन निवारै टालै रोग ॥ पवित्र थई समरै जे जाप ॥ टालै सगला पाप संताप ॥ ४२ ॥ निरधनने घरि धन नो सूत्र ॥ श्रापै अपुत्रीयाने पुत्र ॥ कायरनें सूरापण धरै ॥ पार उतारै लबी वरै ॥ ४३ ॥ दो जागीने दै सोना ग ॥ पगविरुणाने श्रापै पग॥गमनहीं तेहनें बैठा म ॥ बंबित पूरै अलिराम ॥ ४४ ॥ निरधाख्या में ये आधार ॥ जवसायर ऊतारै पार॥ारतीयानी पार त नंग ॥ धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥ ४५ ॥ समस्या सहाय दीयै यद राज॥ तेहना मोटा अबै दिवाज ॥ बुझि हीणने बुद्धि प्रकास ॥ गूंगाने चै वचन विला स ॥४६ ॥ कुखियांने सुखनो दातार ॥ जय गंजण रंजण अवतार ॥ बंधन तूटै बेडी तणा ॥ श्रीपाव नाम श्रदर समरणा ॥ ४ ॥ (दूहा) श्रीपाव नाम अदर जपै ॥ विश्वानर विसराल ॥ हस्ति यूथ दूरेटलै ॥ उद्धरसींह सियाल ॥ ४ ॥ चोर तणा जयचकवै ॥ विष अमृत उडकार ॥ विषधरनो विष ऊतरै ॥ संग्रामें जयजयकार ॥ ४ए ॥ रोग दालिज फुःख ॥ दोहग दूर पुलाय ॥ परमेसर श्री पासनो ॥ महिमा मन्त्र जपाय ॥ ५० ॥ (कमखानीचाल )२ जंजितुं जंजितुं जंज उपसम धरी ॥ ॐ हीं श्री श्री