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षष्ठमपरिछेद. थाये ॥ सत्तर नेद सनात्रो जी ॥ गम ना दर सण करवा ॥ श्रावै लोक प्रजातो जी॥१॥ (ए०) (उहा ) इकदिन देखै अवधिसुं॥ पारकर पुरनो नंग ॥ जतनकरुं प्रतिमा तणो ॥ तीरथ अबै अनं ग ॥ २२ ॥ सुहणो आपै सेग्नें ॥ थल अटवी उजा म ॥ महिमा थास्यै अति घणी ॥ प्रतिमा तिहां पुहचाड ॥ २३ ॥ कुसल खेम तिहां अबै ॥ मुजनें तुऊने जाणि ॥ संका बोमी काम करि ॥ करतो मकरिस काणि ॥ २४ ॥ (ढालपास मनोरथ पूराकरै ॥ वाहण एक वृषन जो तरै ॥ पारकरथी परियाणो करै ॥ श्क थलचढ बीजो ऊतरै ॥ २५॥ बारै कोस श्राव्या जेतलै ॥ प्रतिमा नविचालै ते तलै॥गोठी मनद विमासण थई। पास जुवन मंमा → सही ॥३६ ॥ आ अटवी किमकरुं प्रयाण ॥ कु टको कोश्नदीसै पादण ॥ देवल पास जिनेसर तणो ॥ मंमा किम गरथै विणो ॥ २७ ॥ जलविन श्रीसंघरहस्यै किहां ॥ सिलावटो किम आवै श्हां ॥ चिंतातुर थयो निखालहै ॥ यदराज श्रावीनें कहै ॥ २० ॥ गुंहली ऊपर नांणो जिहां ॥ गरथघणो जाणीजे तिहां ॥ स्वस्तिक सोपारीने गणि ॥ पाह ण तणी उबटस्यै खाणि ॥ श्ए ॥ श्रीफल सजल तिहां किल जूओ ॥ अमृत जलनीसरसी कूओ ॥ खाराकूया तणो श्ह सैनांण ॥ नूम पड्यो छै नीलो