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जैनधर्मसिंधु. नहीतो मारै सोय ॥ ११॥ पाउलीरात परोमीय ॥ पहली बंधै पाज॥सुहणा माहेंसेग्नें ॥संनलावै जद रोज ॥ १५ ॥ ( ढाल ) एम कही यद आयो राते ॥ सारथ वाहुनेंसुहणे जी ॥ पासतणी प्रतिमा तुंलेजे ॥ लेतो सिरमत धुणे जी ॥१३॥ (एम) पांचसैटका तेहनें श्रापे ॥ श्रधिको मा थापिस वारूजी ॥ जतन करी पुहचाडे थानकि ॥ प्रतिमा गुण संचारै जी ॥ १४ ॥ (एम) तुऊने होसी बहु फलदायक ॥ लाई गोपीने सुणजे जी ॥ पुजी स प्रणमीस तेहनापाया ॥ प्रहठीने थुणजे जी ॥ १५ ॥ (ए) सुहणो देने सुरचाल्यो ॥ अपनें थानक पहुतोजो ॥ पाटण मांहें सारथवाहु ॥ हीडै तुरकनें जोतोजी ॥ १६ ॥ (ए) तुरकै जातां दीगे गोठी ॥ चोखा तिलक बिलाडै जी॥ संकेत पहुतो साचोजाणी ॥ बोलावै बहुलामैजी ॥ १७ ॥ (ऐ०) मुफ घरि प्रतिमा तुऊने श्रापुं ॥ पास जिणेसर केरीजी ॥ पांचसै टका जो मुफ आपै ॥ मोलन माणु फेरीजी ॥ १७ ॥ (ए) नाणो दे प्रतिमा लेई ॥ थानक पहुतों रंगैजी ॥ केसरचंदन मृगमद घोली ॥ विधसुं पूजे रंगेजी ॥ १५ ॥ (ए) गादी रूमी रूनी कीधी ॥ ते मांहि प्रतिमा राखैजी ॥ अनुक्रम श्राव्यापारकरमांहें ॥ श्रीसंघने सुर सा खै जी ॥२०॥ (ए) उन्लव दिन अधिका