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षष्ठमपरिछेद. मात ॥ १ ॥ नारंगैश्रणहिलपुरै ॥अहमदा वादै पास ॥ गौडीजी धणी जागतौ ॥ सहुनी पूरे श्रास ॥२॥ सुज वेला सुत्नदिन घमी॥महुरत एकममाण॥ प्रतिमा ते इह पासनी ॥ थई प्रतिष्ठा जाण ॥३॥ ( ढाल ) गुण हि विसाला मंगलीक माला ॥ वामा नो सुत साचोजी ॥ धण कणकंचण मणिमाणकदे ॥ गौडीजी धणी जाचोजी ॥४॥ (गु०) श्रण हिलपुर पाटणमांहे प्रतिमा ॥ तुरक तणें घर हुँतीजी ॥ अश्वनी नूमि अश्वनी पीमा ॥ अश्वनी वालि विगू ती जी ॥ ५॥ ( गु०) जागंतो जद जेहनें कहि यै ॥ सुहणो तुरकनै श्रापैजी ॥ पास जिने सर केरी प्रतिमा ॥ सेवक तुक संतापै जी ॥६॥ (गुण) प्रह उठीने परगट कर जे ॥ मेघा गोठीने देजे जी ॥ श्रधिको मलेजे उडो मलेजे ॥ टक्का पांचसै लेजेजी ॥ ७॥ (गु०) नहिं श्रापिस तोमारीस मुर मीस ॥ मोर बंध बंधास्यैजी ॥ पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुऊ ॥ लबिघणी घर जास्यै जी॥ ॥ (गु०) मारग पहिलो तुमनें मिलस्यै ॥ सारथवाइजेगोठी जी ॥ निलवट टीलो चोखा चोड्या ॥ वस्तु बहै तसुपोठी जी॥ए॥ (गु०) (दहा)म तुरकडो ॥ माने वचन प्रमाण ॥ बीबीनेसुहणा तणो ॥ संनलावै सहिनाण ॥ १० ॥ बीबी बोले तुरकनें ॥ वमा देव है कोय।अबसताब परगटकरो॥