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शष्ठमपरिछेद.
४७७ मुनि परिवरिय ॥ नूमिय करय विहार, नवियांजन पमिबोह करे ॥ समवसरण मजार, जे जे संसा उप जे ए ॥ ते ते पर उपगार, कारण पूजे मुनिपवरो ॥२३ ॥ जिहां जिहां दीजेदिक, तिहां तिहां केव ल उपजे ए ॥ आप कन्हे अण हुँत, गोमय दीजें दान श्म ॥ गुरु उपर गुरु नत्ति, सामिय गोयम उप निय ॥ण बल केवल नाण, रागज राखे रंग जरे ॥२॥ जो अष्टापद शैल, वंदे चढि चनविस जिण श्रातम लब्धि वसेण, चरम सरीरी सोइ मुनि ॥ श्य देसणानिसुणेश, गोयम गणहर संचरि ॥ तापस पन्नरस एण,तो मुनि दीगे आवतोए ॥२५॥ तवसोसिय निय अंग, अम्ह सक्ति नवि उपजे ए॥ किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए॥ गिरु ए अजिमान, तापस जो मन चिंतवे ए॥ तो मुनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ॥३६॥ कंचण मणि निप्पन्न, दंग कलस धज वमस हिय ॥ पेख वि परमाणंद, जिनहर नरहेसर महि अनियनिय काय प्रमाण, चदिसि संविधजिणह बिंब ॥ पणमवि मन उदास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥ २७ ॥ वयर सामीनो जीव, तिर्यक् ज़ंजक देव तिहां ॥प्रतिबोधे पुंडरीक, कुंमरीक अध्ययन जणी ॥ वलता गोयम सामी, सवि तापस प्रतिबोध करे ॥ लेश आपणे साथ, चाले जिम जूथाधिपति