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६ जैनधर्मसिंधु. घाट तो ॥ वैरविवर्जित जंतुगण, प्रातीहारज श्राप तो ॥ सुर नर किन्नरअसुरवर, इं इंसाणी राय तो ॥ चित्ते चमकिय चिंतवे ए, सेवंता प्रजुपाय तो ॥ १० ॥ सहस किरणखामी वीर जिण, पेखवी रूप विसाल तो ॥ एह असंनव संजव ए, साचो ए इंस जाल तो ॥ तो बोलावे त्रिजग गुरु, इंजनू नामेण तो ॥ श्रीमुख संशय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो ॥ १५ ॥ मान मेव्दि मद ठेलि करे, जगतें नामें सीस तो ॥ पंचसयाशुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सीस तो॥बंधव संजम सुण वि करे,अगनिनू आवे ३ तो ॥ नाम लेश्यानाष करे, ते पण प्रतिबोधे तो ॥२०॥ श्णे अनुक्रमें गणहररयण, थाप्या वीर इग्यार तो ॥ तो उपदेशे नुवन गुरु, संजमशुं व्रत बार तो ॥बिहु उपवासें पारणु ए, आपण विहरंत तो ॥ गोयम सजम जग सयल, जयजयकार करत तो ॥ २१ ॥ वस्तुबंद ॥ इंदनूर इंदनू चढिय बहु मान ॥ हुंकारो करि संचरि, समवसरण पुह तो, तुरंततो ॥ इह संसय सामि सवे चरमनाह फेडे फुरंतो ॥ बोधबीज सद्याय मने, गोयम जवह विरत्त ॥ दिका लेश सिरका सहिय, गणहर गुण संपत्त ॥ २२ ॥ नाषा ॥ श्राज हु सुविहाण, अज पंचेलिमा पुण्य जरो ॥ दीगा गोयमसामि, जो निय नयणे अमिय जरो ॥ सिरिगोयम गणधार, पंचसया