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जैनधर्मसिंधु ॥ स ॥२॥ सातम दिन साखे तमें ॥ सु०॥ वा वीयें अव्य विशेष ॥ स ॥ सुकृतकर्षण जगीनें ॥ ॥ सु० ॥ उपजे धान्य विवेक ॥ स० ॥३॥ वाम करो तुमें शीलनी ॥ सु० ॥ तस पांखमी चिहुँ होर ॥ स ॥ चोकी वो सही धर्मनी ॥ सु० ॥ अध को न करे जोर ॥ स ॥४॥ मनरुपी माल बनावियें ॥सु॥बेसी ये तिहां सावधान ॥सण॥ विरतिरुपी गोफ णे करी ॥ सु० ॥ नाखियें गोला शान ॥ स ॥॥ पुष्कृत पंखी उमाडीयें ॥ सु० ॥ करी निश्चयव्यव हारे ॥स॥ पोंक आरोगियें पुण्यना ॥ सु० नवियण थ हुशियार ॥ स० ॥ ६॥ सात नय जाणी तुमें ॥ सु० ॥ तपी खलां बनाव ॥ स० ॥ करुणारस जल आणीने ॥ सु० ॥ सात नय खलां पिवराव ॥ ॥ स ॥७॥ जीवदया सकटे नरी ॥ सु० ॥ सुकृत कर्षण सार ॥ स० ॥ संवर बलदनें जोतरी ॥सु०॥ श्राणियें खला मकार ॥ स ॥ ॥ ध्यानरुपी थंज रोपीने ॥ सु० ॥ लणियें रूपक संयोग ॥ स० ॥जि नाण सही नावीयें ॥ सु० ॥ हालरु अशोक ॥ स० ॥ ए॥ फुःखरूपी बूरां शाटकी ॥ सु०॥ ना खियें दूर सुजाण ॥ स० ॥ आतमबल नंमारमें ॥ ॥सु० ॥ जरजो स्कृत ध्यान ॥१॥ स० ॥ श्ह नव परनव नवो नवें ॥सु॥ पामियें सुख विचित्रास संतोष राखी श्रातमा ॥ सु० ॥कीजे पुण्य पवित्र ॥