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पंचमपरिछेद. ने अनिराम ॥ १॥ बठी तणा गुण वर्णवं, मूकी मन थनिमान ॥ हवे नवियण नावें करी, निसुणो थश् सावधान ॥२॥ ढाल ॥ मुबखमानी दे शी ॥ठी कहे मुज उलखी रे, बटको पापथी दूर सनेहा सांजलो काय रदा कीजीयें रे, होवे ज युं सुखसनूर ॥ स० ॥ १॥ चार कषाय राग शेषने रे, नाखजो दूर विमारि ॥ स ॥ बए अव्यने उल खी रे, पालो निरतिचार ॥ स ॥२॥ सम कित शुद्ध जगावियें रे, नांगिये पुःखनी बेमि ॥ स॥ मग्न रहो जिनधर्ममें रे, नाखो कुगति उखेमि ॥ ॥ स० ॥३॥ बह श्राराधो जावगुंरे नवियण थर उजमाल ॥ स ॥ नकित मुकित सदा लहो रे, होवे युं मंगल माल ॥ स० ॥४॥ लब्धि कहे सा जन तुमें रे, म करो प्रमाद लगार ॥ स ॥ दिन दिन संपदा अभिनवी रेहोवे श्री श्रीकारसाय॥
॥अथ सप्तमीनी सद्याय प्रारंजः॥ ॥ बुहारणे जायो दीकरो सो नारी हे ॥ ए देशी ॥ सातम कहे सात आतमा ॥ सुखकारी हे ॥ प्राणी राखीयें सोय ॥ सदा सुखकारी हे ॥ सुख आवे गर्व न कीजीयें ॥ सु० ॥ पुःख
आवे दीन न होय ॥ स ॥१॥ सात जय निवा रियें ॥ सु० ॥ बमियें मिथ्या शंस ॥ स ॥ सात अमीरस कुंभमां ॥ सु०॥ ऊलीयें थश्ने हंस ॥