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जैनधर्मसिंधु राजमती पद पङ्कज, मंगल रहै नेमी राय ॥ने १॥ मंगल धन धन्या मुनिनायक, सव तपसि बिच सार ने०॥ मंगल गणपति मंगल पाठक मंगल सव अनगार ॥ ने ३॥ जयजय २ खेम कुशल गुरू, श्रानन्द घन अवतार ॥ ने ४ ॥ इति ॥
रागिणी काफि गावो मङ्गलचार, सखीरी बीर प्रनुको जन्म जयो है । अबधी ज्ञान कर इन्ड कमदीयो, करहुं महोबव सार ॥ स॥१॥ मेरुशिखर पर देव सकल मिल, करत सुत्नक्ति अपार ॥ स०२॥ वसु विधि पूज रचत प्रजुजी कि, सफल करत अवतार ॥सण्३॥ जय जय शब्द करत सूर नर वर, जय जय जगदाधार ॥ स०४॥ अजर अमर पद दायक प्रजुजी, सेवो शिव सुखकार ॥ स० ५ इति ॥
रागिणी ईमन कल्यान कीजे मङ्गलचार, आज घर नाथ पधारे ॥की०॥ पहले मङ्गल जीनजीकी पूजा, घस केशर घन सार॥ आ० १॥ उजे मङ्गल धुप जो खेळं, और चढाऊं पुष्प हार ॥ आ०२॥ तिजे मङ्गल घएटा बजाऊं, फांऊनकी फङ्कार ॥ ३॥ चोथे मङ्गल आरती ऊतारूं, नांचं थेईथे तार पाण्रूप चन्द कहे कहां लग वरएं, शिव लहिये नव पार ॥ श्रा की० ५॥ इति ॥