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चतुर्थपरिवेद. ११५ रागिणी सोहिनी-ताल यत थाज की रेण सोहाई, दरस मोहनकी में पाई॥ था॥ पद पङ्कज तेरो मन मधुकर मेरो, सदा रहत लपटाई ॥ द० १॥ नवपद ध्यान सदा में चाहुँ, अवर नही दील नाई द० ॥२॥ अजर अमर पद चाहत तुमसे, आनन्द मङ्गल वधाई ॥ द॥३॥इति
रागिणी काफी पोढो पोढोजी झषन पीयारे, निमा बस नयन तिहारे ॥ पोढो ॥ प्रनु बालस अती ललसानी, पुढे मरुदेव्या माई॥ पोढो ॥१॥ प्रनु सुनन्द सुमङ्गला राणी, जिनरुच रुच सेज सवारी ॥ पोढो॥२ प्रजु नवल साजन्य सनेही, तुंतो मन वंबित फल देही ॥ पोढो ॥३॥ इति ॥
रागिणी नैरवी राखो नाथ बडाई, हमारी ॥ रा० सेवा चोर सदा मोहे जानो, दरसन देवोनें गुसांई हमारे ॥ राण १॥ अनाथनके नाथ जगत जन वछल, सुन्दर वदन सुहाई हमारे ॥ रा०॥ नानु चन्द प्रजु जल थल अम्वर, जहां देखो तहां सहाई हमारे॥३॥इति
रागिणी कालेंगरा ॥ आवो गावो वधाई मोरी साथनीयां॥ श्रावो॥ नृप सुमित्रके पदमा देवी, सुत जायो सुखदारी ॥ आवो १ ॥ जन्म कल्याणक करीये जाको, मुनि