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चर्थपरिछेद.
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॥ मङ्गल॥
रागिणी कालेंगरा मङ्गल मूरत पाशकी या ॥ मग ॥ दारुण पङ्कः सकल मुखहारी, दायकहै सुखरासकीया॥मङ्ग० १॥ सेवन ईन्छ चन्छ रवी सुरगुरु, चाहत हैं नित जा. सकी या ॥ मङ्ग० २॥ निरखत नैन सफल नई आस्या, करण चरणके दासकी या॥मङ्ग३॥ इति॥
रागिणी बाहार आज महोबव रंग रलीरी, जायो सुत त्रिसलादे राणी, कामित पूरण काम कलिरी॥आ॥सजि सिनगार सकल सूर बनिता, आपन आपन मेल चलिरी॥ श्रावत सिझारथके आङ्गण, पूरत मोतीयन चोक मीलिरी॥ श्रा०१॥ईन्छ हुकुम करी धनद पठायो सब बसुधा धन धान्य नरिरी॥कनक रत्नमणि पंच बरणके, कुसुम विखेरत गलीय गलीरी॥श्रा०॥ इन्द्राणी मिल मङ्गलगावे, नाचत नाटक सूर कुमरीरी ॥ बाजत गहर शबद कर मुन्दुनी, वीणा वेणु मृदङ्ग नलीरी॥श्रा३॥ जय जय कार जयो तिहुं जगमे, व्याधि व्यथा सब पूर टलीरी॥ हरखचंद जनमें प्रनु मेरे, मनकी आस्या सफल फलिरी श्रा०४॥ इति ॥
चैतावरकी चाल मङ्गल राजे गिरनार, नेम पद मङ्गल है॥देवा०॥