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चतुर्थपरिछेद. ॥ ढाल बीजी ॥ वालम वहेलारे
आवजो ॥ ए देशी॥ ॥ वीरजिनवर एम उपदिशे, सांजलो चतुर सु जाण रे ॥ मोहनी निंदमां कां पमो, उलखो धर्मनां गण रे ॥ विरति ए सुमति धरी आदरो ॥१॥ ए आंकणी ॥ परिहरो विषय कषाय रे, बापमा पंच परमादथी ॥ कां पडो कुगतिमां धाय रे ॥ वि०॥२॥ करी सको धर्मकरणी सदा, तो करो ए उपदेश रे॥ सर्वकाले करी नवि शको, तो करो पर्व सुविशेषरे ॥ वि० ॥३॥ जू जूत्रा पर्व षट्नां कह्यां, फल घणां श्रागमें जोय रे ॥ वचन अनुसारें आराधतां, सर्वथा सिकिफल होय रे ॥ वि०॥४॥जीवने आयु परन व तणुं, तिथिदिने बंध होय प्रायरे ॥ तेह नणि एह आराधतां, प्राणि सति जाय रे ॥ विणाय॥ तेहवे अष्टमी फल तिहां, पूजे गौतम स्वामरे ॥ज विक जीव जाणवा कारणे, कहे वीर प्रजु तामरे ॥ वि०॥६॥ अष्ट महा सिसि होय एहथी, संपदा श्राग्नी वृद्धि रे॥ बुझिना पाठ गुण संपजे, एह थी आठ गुण सिकिरे ॥ वि०॥ ७ ॥ लाज होय श्राउ पडिहारनो, अव पवयण फल होयरे ॥ नाश श्रम कर्मनो मूलथी, अष्टमीन फल जोय रे ॥ वि०॥ ॥ आदि जिन जन्म दीक्षा तणो, अजितनो जन्म कल्याण रे ॥ च्यवन संजव तणो एह