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चतुर्थपरिछेद.
शए३ टालवा ॥ ९० ॥ सवि औषधनो जाण रे ॥ टुं० ॥ श्रादस्यो में श्राशा धरी ॥ ९० ॥ मुज उपर हित श्राणिरे ॥ हुं० ॥ ५॥ श्रीविजयसिंह सूरीशनो ॥ हुं० ॥ सत्य विजय पन्यासरे ॥ ढुं० ॥ शिष्यकपूरवि जय कवि ॥ ९ ॥ चंद किरण जस जास रे ॥ ९० ॥६॥ पास पंचासरा सान्निध्ये ॥ हुं० ॥ खिमाविजय गुरु नाम रे ॥ हुँ ॥ जिन विजय कहे मुफ ह जो ॥ ९ ॥ पंचमी तप परिणाम रे ॥ हूं ॥७॥ कलश ॥ श्य वीर नायक, विश्वनायक, सिकि दाय क, संस्तव्यो ॥ पंचमी तप संस्तवन टोमर, गुंथी निज कंठे उव्यो ॥ पुण्य पाटण, क्षेत्रमांहे, सत्तर त्रा | संवत्सरें ॥ श्रीपार्श्व जन्म, कल्याण दिवसे, सक ल नवि, मंगल करे॥॥इति श्रीपंचमीस्तवनम् ॥
॥अथ श्री अष्टमीनु स्तवन लिख्यते ॥ ॥हारे मारे गम धरमना साडा पचवीश देश जो ॥ दीपे रे त्यां देश मगध सहमा शिरें रेलो ॥ हारे मारे नगरी तेदमां राजगृही सुविशेष जो ॥ राजे रे त्यां श्रेणिक गाजे गज परें रे लो ॥१॥ हारे मारे गाम नगर पुर पावन करता नाथ जो ॥ विच रंतां तिहा श्रावी वीर समोसख्या रे लो॥हा॥चउद सहस्स मुनिवरना साथें साथ जो ॥ सुधारे तप संयम शियले अलंकस्यारे लो ॥२॥ हांग ॥ फूल्या रस जर फूच्या अंब कदंब जो ॥ जाणुं रे गुणशील