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जैनधर्मसिंधु. रे, सादि अनंत निवास ॥ त ॥ १० ॥ रमणी वि जय शुजापुरी रे, जंबु विदेह मकार ॥ त ॥ श्रम रसिंह महीपालने रे, अमरावती घरनार ॥ तम् ॥ ११॥ वैजयंतथकी चवी रे, गुणमंजरीनो जीव ॥ तम् ॥ मान सरस जेम हंसलो रे, नाम धघु सुग्रीव ॥ त ॥ १२ ॥ वीशे वरसें राजवि रे, सहस चोरा शी पुत्र ॥ त ॥ लाख पुरव समता धरे रे, केवल ज्ञान पवित्र ॥ तम् ॥ १३ ॥ पंचमीतप महिमाविषे रे, नांखे निज अधिकार ॥ त० ॥ जेणे जेहथी सु ख लद्यु रे, तेहने तस उपकार ॥१४॥ त०॥ इति॥ ॥ढाल बही ॥ करकंमुने करूं वंदना ॥ ए देशी ॥
॥ चोवीश दमक वारवा ॥ हुँ वारी लाल ॥ चो वीशमो जिनचंदरे ॥ हुं वारी लाल ॥ प्रगव्यो प्राण त स्वर्गथी ॥ ९ ॥ त्रिशला उर सुखकंदरे ॥ हुं० ॥१॥ महावीरने करुं वंदना ॥ हुँ॥ए आंकणी॥ पंचमी गतिने साधवा ॥ ९ ॥ पंचम नाण विलास रे ॥ ९० ॥ माहानिशीथ सिझांतमां ॥ हुं० ॥ पंच मी तप प्रकाश रे ॥ हुं० ॥॥ अपराधी पण उक स्यो । ढुंग ॥ चंम कोशियो साप रे ॥ ढुं० ॥ यज्ञ करता ब्रामणो ॥ हुँ ॥ सरखा कीधा श्राप रे ॥ हुँ० ॥६॥ देवानंदा ब्राह्मणी ॥ हुँ॥ रिखजदत्त वली विप्ररे ॥ हूं ॥ ब्याशी दिवस संबंधथी ॥ हूं ॥ कामित पूस्यो क्षिप्र रे ॥ हुं ॥४॥ कर्म रोगने