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चतुर्थपरिछेद. थियो मंगल गेह ॥ पोसहमां न करी शके, तणवि धि पारण एह ॥ १४ ॥ अथवा सौजाग्य पंचमी, उ ज्वल कार्तिकमास ॥ जावजीव लगें सेवी, उजम णा विधि खास ॥ १५ ॥ इति ॥
॥ ढाल चोथी ॥ एकवीशानी देशीमां ॥ ॥ पांच पोथी रे, ग्वणी पागं विटांगणां ॥ चाबखी दोरा रे, पाटी पाटला वतरणां ॥ म सी कागल रें, कांबी खमीश्रा लेखणी ॥ कवली डा बली रे, चंप्रथा करमर पुंजणी ॥१॥ त्रूटक ॥ प्रा साद प्रतिमा तास नुषण, केसर चंदन माबली ॥ वासकूपि वालाकूची, अगं खूहणां बावमी ॥ कलश थाली मंगलदीवो, भारतीने धूपणां ॥ चरवला मुह पत्ती साहमीवबल, नोकरवाली थापना ॥२॥ ढाल ॥ ज्ञान दरिसण रे, चरणनां साधन जे कह्यां ॥ तप संयुत रे, गुणमंजरीयें सदह्यां॥ नृप पूढे रे, वरदत्त कुंवरने अंग रे ॥ रोग उपनो रे, क वण करमना जंग रे ॥३॥ त्रूटक ॥ मुनिराज ना से जंबु छीपें, जरत सिंहपुर गाम ए ॥ व्यवहारी वसु तास नंदन, वसु सार वसुदेव नाम ए ॥ वन माहे रमतां दोय बंधव, पुण्य योगें गुरु मख्या ॥ वे राग्य पामी जोग वामी, धर्मधामी संवर्या ॥४॥ ढाल ॥ लघु बांधव रे, गुणवंत गुरु पदवी लहे॥प एसय मुनिने रे, सारण वारण नितु दिए ॥ कर्म