________________
द्वितीयपरिछेद.
२७५ ताहे वाचताहे और जावसे सुनताहे तो उनको श्र त्यंत नावकी (सम्यक्तकी) विशुद्धी होती हे. __ जो प्राणि जैनागम लिखाके गुणिजनोंको वांचने के लिए समर्पण कताहे उनकों उस शास्त्रके वर्ण मात्र अदरकी संख्या जितने वर्ष देवलोक गति प्राप्त होती हैं। ___ जो ज्ञानकी भक्ति करी जातीहे वो ज्ञान विज्ञा नसे शोजनीक होताहे. ज्ञान विज्ञानकी प्राप्तिकरने वाला अन्नदानहे इसलिए उत्तमजन हर वर्ष यथा शक्ती एकैक खामीवबल करें. बांधव कुटुबको जि माना यह संसार हेतुहे परं उस्मेनी साधर्मीक वन ल किया जायतो अवश्यमेव विशेष लान प्रद होता हे. अर्थात् नवसंसारसे तारकता गुण निष्पादक हो सक्ता हे.
दर वर्ष सर्व प्राणीने अपने अपने तरफसे अव श्यमेव एक वार तो स्वामी वछल करना हि चहि ये. विवेक वान् श्रावक हर वर्ष एक वार तो अव श्यमेव श्रीसंघपूजा (प्रनावना) यथाशक्ति करे. योग्य आहार वस्त्र प्रमुख श्रीगुरुकों जलीनक्ति जा वसें देवे. यद्यपि अपनी विशेष शक्ति न होय तथा पि यथाशक्ती सत्पात्रोंकों असन, पान, खादिम स्वादिम, वस्त्र, पात्र, औषध प्रमुख अवश्य मेव देवे.