________________
जैनधर्मसिंधु. जाताहे. मात्र कीर्त्तिके लिए जो प्राणी दान देते हैं सो दान धर्म नही हे परंतु वो व्यसन हे. (विनोद मात्र हे एसा जाणना.) व्याजमे धन मुगुणा होता हे. व्यापारसें चोगुणा लाल होता हे. क्षेत्रसे सो गु णा लाल होता हे. परं पात्रदानमें अनंतगुण लान हो शक्ता हे. ____ साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, प्रतिमाजी, मंदिरजी, ज्ञान यह सात क्षेत्रमे धनका बोना बीजके न्याय विशेष लान दायक होता है. जो प्राणि न क्ति नावसे जिन मंदिर नया बनाताहे उस्मे बहुत लानहे. क्यो की नये बनाये मंदिरके जितने परमा णु ( रजकण ) की संख्या होती हे तितने पढ्योपम प्रमाण देव सुख जोगता हैं. __ औरजी यह है कि जितने दिन नया मंदिर र हता हे तितने हजार वर्ष मंदिर बलानेवाला देवा यु नोक्ता होसक्ता हे. ___ सोना, चांदी, पाषाण, रत्न, मृत्तिका प्रमुखकी य थाशक्ति जो प्राणी नयी प्रतिमा जरावे तो नराने वाला प्राणी तीर्थंकर पद पामताहे.कममे कम एक अंगुष्टमात्रकीनी जो प्राणी नयी प्रतिमा जरावे सो प्राणी अवश्य देवादि सुख जोगके परमानंद पद प्राप्त होता हे. मोक्षफलका देनेवाला धर्मरूप वृद का मूल समान यह जैनागमको जो प्राणी लिखा