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द्वितीयपरिवेद.
२७३ पुत्रादिक को साथ लेके नोजन करना. जगवंतके पंचकल्याणकों के दिनमे यथाशक्ती सत्पात्रोंकों और याचकों को दानदेना.
॥ति दिन चर्यायां पंचम वर्गः ॥ उत्तम श्रावक धर्म कर्ममे प्रवृत्ति रखता थका पूर्ण निवृत्तिको प्राप्त कर शक्ताहे इसलिए अतृप्त मनसे निरंतर धर्म कर्म अवश्यमेव करना.
जिस धर्मसें यह संपदाको प्राप्त हुवा हे तो अवश्य उस अपने उपकारीकों सेवन किये विना कोन रहेगा. एसा कोन मूर्ख होय की जिससे
आगामी कालमें लान होने वालाहे एसे स्वामी (धर्म) को सेवन करने में प्रमाद रखके श्राप स्वा मी जोहीका पातकी बने?
दान, शील, तप, नाव यह चतुर्विध धर्मकों धी र पुरुष आराधके (पुण्यानुबंधिपुण्य) और मोद सु खक्यों प्राप्त करखेता हे.थोमामेंसेंजी थोमा दानदेना परं बहुत मिलनेकी अपेक्षा न रखनी,क्योंकी श्वानुं सारी लक्ष्मी क्या मालम कब मिलेगी?
ज्ञानदानसे ज्ञानवान् होता हे. अजयदानसें नि जय होता हे. अन्नदानसे सुखी होता है. औषध दानसे प्राणि अवश्य निरोगी होता हे.
पुण्यकर्मसे कीर्ति होतीहे. दान हे सो मात्र की र्तिके लिए नही हे परं मोद सुखके वास्ते दिया