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जैनधर्मसिंधु. ___ कूवा, श्राराम, बगीचा, वृद, तलाब, गौ प्रमुख जो दान करते हे तथापि उनका जल प्रमुखको हानी नही आती हे प्रत्युत उनकी वृद्धि होतीहे तेसे सत्पात्रमें दान देनेसें धन जाता नही हैं परं प्रत्युत उनकी वृद्धि करता हे एसा समजना चहिये.
प्रत्यक्ष देखिये की दान देने मे और जुक्तनो गी होनेमे कितना बड़ा अंतर(फरक) देखाजाताहे. नुक्त जोग (खायापीया ) उसरे दिनहि विष्टारूप होजाता है. और दान दिया अदत होता हे (वृद्धि पामतादे) वास्तव में विचार किजीयें की देनेमें श्र धिक लान हुवा कीखाय खरचाय बेहने में अधिक लान होता हे?सो विचारवंत आपहि समज सक्ते हे.
शतसः प्रयाश करके प्राप्त किया और प्राणसेंनी अधिक वजन, यह धन हे. उनकी गती (कार्य)मात्र एकदानहि हे.अन्य गतिजो देखिजाती हे सो मात्र विपत्ती समजीजाती हे. न्यायमार्गसे उपार्जित कि ये धनको जो विवेकी जन सप्त क्षेत्रमे नियोजित करते हे सो श्रावक अपने धन और जीवितकों स फल कर सक्ते हे.
॥ति दिनचर्यायां षष्ठः वर्गः समाप्तः॥ इति चारित्रसुंदर गणि विरचितः आचार ग्रंथः
समाप्तः