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तृतीयपरिबेद.
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हि नहीं. वैयावच्च ( गुरुसेवा, पगचंपी ) करनेसे अ दय सुख, मंगल, श्रेयकी प्राप्ति होतीहे. इसलिए प्रतिक्रमण समाप्ति पीछे विवेकी गुरुकी विश्रामणा करे. गुरुकी विश्रामणा समय मुखपर वस्त्र लपेटनां, गुरुकों अपने पगका स्पर्श न होने देना. एसें गुरूके सर्व शारीरीक खेदको मीटावे. उपाश्रयसें निकलके रस्ते में जो जो जिनमंदिर आवे उनमें दर्शन करता थका अपने घर जाय. तिहां पग धोयके पंचपरमेष्टी मंत्रका जाप करे.
मेरेको अरिहंतका, श्रीसिहजी महाराजका, के वली नांषित धर्मका, साधुजी महाराजका शरण हो. __मंगलके करनेवाले, फुःखगणसे दूर रखनेवाले, शीलसन्नाह ( बकतर ) को पेहेनकें काम कंदर्पकों जितनेवाले थूलील मुनि को नमस्कार हो.
गृहस्थ उतेजी जिस्की बडी शील लीलाथी और सम्यक्त के प्रजावसे जिस्की विशेष शोनाथी एसे सुदर्शन सेठकों नमस्कार हो.
कामकंदर्पकों जितनेवाले, आजम्नपर्यंत. अति चार रहित ब्रह्मचर्यकों परिपालन करनेवाले एसे मुनियोंको धन्य, कृत पुण्यसे नमस्कार हो. __एसे पंच परमेष्टीका स्मर्ण करके कामोदयके लिए नीचे प्रमाणे विचार करे. जिसने अपनी इंडियोका जय कियाहि नहि एसे बहुल कर्मी, निःसत्व, जीव,