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जैनधर्मसिंधः
सक्रिया सहित शान मोद साधक होता हे एसा जाणके संध्या समय पुनः श्रावश्यक करे.
क्रियाहे सोहि फल दायक होतीहे परं एकिला झान फल दायक नही हो शक्ता हे. देखिये स्त्रीकों नोगे विना और जोजनकों खाए बिना एकिले उ स्के सुखके जाननेंसे सुख न होता हे.
गुरुका योग न होय तो अपने घरमें स्थापनाचा र्य अथवा नवकारवाली प्रमुख की स्थापना करके उस्के पास अवश्य प्रतिक्रमण करना. __धर्मसें हि सर्व कार्य सिद्ध होतेहे एसा हृदयमें जाणके सर्वकाल तद्गत चित्त रहना.और धर्म सम यकों न उलंघन करना. कारणकी धर्मका साधनके समय गए पीछे अथवा समय न हुवे पहिले जोज प तपादिक धर्म किया कि जाय सो अनवसरपर उखर देत्रमे बोए बीजके न्याय निष्फल हो जाताहे. __पंमित पुरुष जो धर्म क्रिया करताहे उस्मे सम्य क् विधि करताहे. क्यों कि न्यूनाधिक विधि करनेसे मंत्रजापके न्याय न्यूनाधिक करनेसे लालके बदले अधिक दोष लगताहे. अर्थात् न्युनाधिक क्रिया क रनी नहि. औषधीजी लेनेकी विधिमे चूक की जाय तो अनेक अनर्थको उपजा शक्तीहे तेसें धर्म कियानी अविधिसे सेवनकी जायतो अनेक अन र्थ उपजाती हे. वास्ते विधिमे बिलकुल चूक करना