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तृतीयपरिबेद. २६५ व्यालु किये पश्चात् अवश्य दिवस ते चोवीहा रका पञ्चरकाण करना. कदापि नही बन शके तो छ विहार तेविहार तो अवश्यमेव करनाहि चाहियें क्यों की रात्रिनोजन त्यागने से दररोज एकाशन करने जितना लान मिल शक्ता हे. __जो प्राणी रात्रि जोजनमें दोष जाणके सबेर और सांजकों दो दो घमी आहारको आगेसें त्याग करतेंहे सो प्राणी पुण्यशाली जाणना. जो प्राणी यावजीव रात्रि नोजनको त्याग करतेंहे.सो अवश्य अपने समग्र आयुष्यका अर्धनाग के उपवासका फलको सहज मात्र में प्राप्त कर शक्ता हे. और वो धन्य बाद के योग्य होता हे. दिवस, रात्रिकों जो प्राणि मरजीमें आवे तब खाया करे और व्रत पञ्चरकाणसे विमुख हे सो प्राणि अवश्य श्रृंग पुब विनाका पशु समजनां.
रात्रिनोजन करनेवाले पुरुष घूअडे, काक, बिल्ल मांजार, गीध, सांबर, सूअर, सर्प, विजु, घीरोली, के अवतार प्राप्त करते हे. रात्रिकों हवन, श्राफ देवपूजा, दान, स्नान, और जोजन तो विशेष कर के नहीज करना एसा अन्य शास्त्रोमेंनि लिखाहे.
इति दिनचर्यायां तृतीय वर्गः समाप्तः ॥ स्वल्प जलसें हाथ पग और मुखकों प्रकासित करके धन्य धन्य मानता बडे हर्षसे संध्या समय धूप दीपादिकसें पुनः जिनपूजा करे.
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