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जैनधर्मसिंधु. लकवाणिो रसवाणिजे विसवाणिजे केसवा णि एवंखुजंत पिल्लणकम्मं निलंबण कम्म, द वनुं देवू सरदह तलाय सोसंच, असयंती जन नां नरण, पोषण कीधां होय, जे को दिवस संबंधि दोष लाग्यो दोय, त०॥ १०॥ ___ आठमां अनर्थ दंम विरमण व्रतने विषेजेज तिचार लागा होय,ते आलो . कंदर्पनी कथा कीधी होय,नांमकुचेष्टा कीधी होय, मुखरी वचन बोल्यांदोय,पापनांअधिकरण जोमी मूक्यां होय उवनोग परिनोग अधिकांवधास्यां होय जे को दिवस संबंधि दोष लाग्यो होय त० ॥११॥ _ नवमां श्री सामायिक व्रतने विषे जे अति चार दोष लागा होय, ते आलो . मन, वचन,कायाना जोग पामुवे ध्याने प्रवर्ताव्या हो य, सामायक मांहे समतान कीधी होय अणपू ग्युं पायुं होय, पारतां वीसास्युंदोय जे कोइ दि वस संबंधि दोष लागो दोय,तस्स मिबा० १२
दसमां देसावगासिक व्रतने विषे जे अ० नीमि नुमिका बाहेरथी वस्तु अणावी दोय त था मोकलावी होय, शब्द करी रूप देखामी पु