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प्रथमपरिछेद. १५७ द्गल नाखी आपणपुं उतुं जणाव्युं दोय, जे कोइ दिवस संबंधि दोष लागो होय त॥१३॥ __ अगीआरमुं पोषध व्रतने विषे जे अ० ला॥ सक्षा संथारो अप्रति लेख्यो होय, फुप्रति ले ख्यो होय, अप्रमार्यो ऊःप्रमा? होय, उच्चा र पासवण नुमिका अप्रति लेखी दोय, उप्र ति लेखी होय, अप्रमार्जि दोय, उ.प्रमार्जि हो य, पोसह मांहें वात विकथा निज्ञ प्रमादें करी काल निर्गम्यो होय, जे को दिवस संबंधि दो ष लाग्यो होय त० ॥१४॥ ___ बारमां अतिथिसंविनाग व्रतने विषे जे अ0 सूजती वस्तु सचित्त नपर मूकी दोय, सचित्तें करी ढांकी होय, काल अतिक्रम्यो होय, आपणी वस्तु परायी कीधी होय, मबर सदित दान दीधुं होय, नाणे बेगं साधु, सा धवीनी चिंतवणा न कीधी होय, नवकार नमो थ्थुणं नण्या गण्या विना व्रत पच्चरकाण पाह्यु होय, जे कोइ दिवस संबंधि दोष लागो होय, तस्समिबामि उक्कडं ॥ संलेषणाव्रतना पांच अतिचार लागा० श्द