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प्रथमपरिवेद. प्पदकु विधातर्नु परिमाण अति कम्युं होय, जे को दिवस संबंधी दोष लागो होय तस्स मिलामि उक्कम॥७॥
हा दिशि परिमाण व्रतने विषे जे अतिचार लागा दोय, ते आलोचं, जंची, नीची, त्रीनी, दशे दिशिनुं परिमाण, अतिक्रम्यु होय, व्य तिक्रम्यु दोय एक दिशि वधारी होय, एक दिशि घटाडी होय पंथने संदेदे मर्यादा लोपी
आघो चाल्यो होय,जे को दिवस संबंधि दोष खागो होय, तस्समि० ॥ ७॥
सातमु उपनोग परिनोग परिमाण व्रतने विषे जे अतिचार लागा होय, ते आलो. पञ्च काण उपरांत सचित्तनो आहार कीधो होय, सचित्त पडिबझनो आदार कीधो दोय, अपक्क उपक्कनो आहार कीधो होय, तुबोषधिना न दाण कीधां होय जे कोइ दिवस संबंधि दोष लागा होय, त०॥५॥ __पन्नरे कर्मादान श्रावकने जाणवां. पण स माचरवा नहीं,इंगालकम्मे वणकम्मे सकट कम्मे साडिकम्मे नामीकम्मे फोडीकम्मे, दंतवाणिजे