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जैनधर्मसिंधु. यदियावहु, रम्म धम्म सो जयन पास जय जं तुपिआमहु ॥ १५॥जुवणारमनिवासदरित्र परदरिसणदेवय, जोणिपूअणखित्तवाल खुद्दा सुर पसुवय ॥ तुह उत्तह सुनह सुह अविसंठुल चिदि, श्य तिहुअण वणसींद पास पावाप
णासहिं ॥१६॥फणिफणफारफुरंतरयण कररं जिअनदयल, फलिणी कंदलदलतमाल निल्नु प्पलसामल ॥ कमहासुर उवसग्गवग्ग संसग्ग अगंजिअ, जय पच्चरकजिणेस पास थंनणयपुर यि॥१७॥मदमणुतरलपमाणनेय वायावि विसंग्खु, नियतणुरवि अविणयसदाव आल सविदिलंघलु ॥ तुदमादप्पपमाणदेव कारुम पवत्तन, श्यमदमाअवहीरपासपालदिविलवं तन॥१७॥ किंकिंकप्पिनणेयकलुणुकिंकिंवनजं पिन, किं वनचिहिनकिठदेवदीय मविलंबिन ॥ कासुनकियनिप्पल्ललल्लुअ हिंउहत्तई, तह विनपत्तनताण किंपिपई पहु परिचत्तोरणातु ढुंसामिहुतुहुँमाय वप्पतुहुँमित्तपियंकरु,तुडंग इतुहुँमश्तुंदिज ताण तुहुँ गुरु खेमकरुाद उ हनरनारिअबराज राउलनिनग्गन,लीण तुद