________________
प्रथमपरिवेद. ११७ कमकमल सरणजिणपालदि चंगन ॥२०॥प इंकिविकयनीरोयलोयकिविपावियसुहसय, कि विमई मंतमहंतकेवि किविसादियसिवपय॥कि वि गंजिअरिउवग्गकेविजसधवलिअ भूअल, मइंअवहीरहि केणपाससरणागयवबल ॥२२॥ पच्चुवयारनिरीहनादनिप्पमपयोअण,तुहुँ जिण पासपरोवयार करुणिकपरायण ॥ सत्तुमित्त सम चित्तवित्तिनयनिंदिअसममण,माअवहीरिअजु गविमइं पासनिरंजण॥१२॥दनं बहुविह हतत्तगत्ततुहं उहनासणपरु,ह सुयणहकरुणि कगण तुडं निरुकरुणाकरु ॥द जिणपास सामिसाबुतुहुँ तिहुअणसामिअ,जंअवहीरदि मइंकखंतश्य पासनसोदि॥२३॥जुग्गाजुग्ग विनागनादनदुजोअणतुदसमनवणुवयारसदा वन्नाव करुणारससत्तम ॥ समविसमद किंघण नएइ जुविदाहुसमंतन, श्य उहबंधवपासनाद मई पालथुणंतन ॥२४॥नयदीणददीणयमुए विअस्मविकिविजुग्गय, जं जोश्यनवयारुकरश्न वयारसमुजय॥दीणददीणनिहीणजेणतुदनाह णचत्तन, तोजुग्गनअदमेव पासपालदिमई चं