SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ए जैनधर्मसिंधु. काण पारुं यथाशक्ति “श्वामि इना पच्चरकाण पायुं “ तहत्ति” एम कही जमणो हाथ कटासणां अथवा चरवला नपर थापी, एक “ नवकार ” गणी, पच्चरकाण कयुं दोय तेनु नाम कहीने पार. ते लखीये बैये:जग्गए सूरे नमुक्कारसदिअंपोरिसिं,साम्पोरिसिं, गंठिसहिअं,मुसिदिअंपच्चरकाण कयुंचनवि दार, आंबिल, निवी,एकासj,बे आसणुं कयं, तिविदार पञ्चरकाण, फासिअं, पालिअं, सोहि अं, तीरअं, कहिअं, आरादिअं, जं च न आ रादिअं, तस्स मिलामि उक्कम, एम कही एक नवकार गणवो॥इति ॥ एत ॥अथ पमिलेहण करवानो विधि ॥ ॥ नवकार पंचिंदिअं कही, इरियावदियाए कहेवू, थापना दोय तो नवकार पंचिंदिअ न कदेवो. पनी तस्स उत्तरी कही एक लोगस्स अ थवा चार नवकारनो कानस्सग्ग करी, प्रगट लोगस्स कही, उन्ने पगें बेसी महपत्ती, चरवलो कटासणुं, उत्तरास, धोतीयुं, कंदोरो आदि नुं पडिलेदण करवं, पड़ी काजो काहामी, जीव
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy