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प्रथमपरिवेद. कलेवर सचित्त आदि जोवं, पनी काजो काहा ढनार थापनाजी सामो कन्नो रही, इरियावदि पमिकमी, काजो परविवा जग्या शोधी, त्रण वार अणुजाणह जस्सग्गो कही, काजो परठवी ने पी त्रणवार “वोसिरे" कहे ॥ इति ॥ए॥
॥अथ देवसि प्रतिक्रमण विधि॥ ॥ प्रथम सामायिकलीजें, पठी पाणी वाव ख्यं होय तो, मुहपत्ति पमिलेहवी, अने आहार वावस्यो होय तो, वांदणां बे देवां, त्यां बीजा वांदणामां "आवसियाए" ए पाठ न कहेवो॥ पठी यथाशक्ति पच्चरकाण करवू ॥ परी खमा ममण देई श्वाकारेण संदिसह नगवन् चै त्यवंदन करू "श्वं” एम कही, वमेराये अथवा पोतं चैत्यवंदन कहेवू ॥ पठी जंकिंचि कदी नमुनुणं कहेवू ॥ पनी ऊना थईने अरिहंत चेश्याणं अन्नवं कही एक नवकारनो काक स्सग्ग करी, पारीने, जेने वमेरा दुकम आपे ते धणीयें “नमोऽर्हत्” कदीने प्रथम थोय क हेवी ॥ पठी प्रगट लोगस्स कही, सबलोए अ रिहंतचेश्याणं कही, एक नवकारनो कानस्सग्ग