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जैनधर्मसिंधु. लोगस्सनो अथवा चार नवकारनो कानस्सग्ग करी पारी, प्रगट लोगस्स कही, खमासमण दें, “श्नाकारेण संदिसह नगवन् सामायि क मुदपत्ती पडिलेडं॥"॥ एम कदी मुहपत्ति तथा अंगनी पमिलेदणना पच्चास बोल कही, मुहपत्ती पडिलेहीयें, पनी खमासमण देश, "श्बाकारेण संदिसद नगवन् सामायिक, संदिसाहं ॥७॥ कही खमा० श्ना० ॥ सामायिक गलं," एम कही, बेहाथ जोडी, एक नवकार गणी, श्बाकार नगवन् पसाय करी,सामायिक दंडक नच्चरावो जी. तेवारें व डिल, करेमि नंते कदे, पगी खमासमण देश बा०॥बेसणे संदिसाहं॥ ॥खमा०॥बन ॥बेसणे गजं ॥श्वं॥खमा०॥श्वा॥सजय संदिसाहुं॥श्वं ॥ खमा० ॥ श्बा ॥ सजाय
(खमा होय, त्यां खमासमण देवू. इच्छा होय, त्यां इच्छा कारेण संदिसह जगवन् कहे, तथा ए सर्व विधि जे लख्यो छे, ते स्थापनाजी संन्मुख क्रिया करवा श्राश्रयी समजवो, परंतु सादात् गुरु विराजमान होय तो इच्छाकारेण संदिसह लगवन् सज्काय संदिसाहुँ, एम शिष्य कहे तेवारें गुरु कहे “संदिसह" तथा रियावहि पडिक्कमवाना आदेशमां गुरु “पमिक्कमेह" कहे, एम सर्व स्थानकें समजी लेवु.)