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जैनधर्मसिंधु.
म पाखि न उलखी, जीव बहुला कीधा पाप जीव सुमतिविजय मुनि एम नणे, जीव च्या वागमण निवार ॥ जीव० ॥ ६ ॥ इति ॥ ८७ ॥
॥ अथ श्री नाथी मुनिनी सद्याय ॥ ॥ श्रेणिक रयवामी चढ्यो, पेखीयो मुनि ए कं ॥ वररूप कांतें मोदी, राय पूबे ए कहोनें विरतंत ॥ १ ॥ श्रेणिक राय हुंरे अनाथ नि ग्रंथ ॥ ति में लीधोरे साधुजीनो पंथ ॥श्रेणि क० ॥ एकणी ॥ इणें कोसंबी नयरी वसे, मुऊ पिता परिगलधन्न || परिवार पूरें परिवस्यो, हुं हुं तेनो रे पुत्ररतन्न ॥ श्रे० ॥ २ ॥ एक दिवस मुऊ वेदना, ऊपनी में न खमाय ॥ मात पिता सढु झरी रह्या, पण समाधि किणे नवि थाय ॥ ० ॥ ३ ॥ गोरडी गुण मणिर्जरमी, चोरमी अबला नार ॥ कोरडी पीडा में सही, कोणे न कीधी मोरमी सार ॥ ० ॥ ४ ॥ बहु राज्य वैद्य बोलाविया, कीधला कोडि उपाय ॥ बावना चंदन चरचिया, तोहिपण रे समाधि नयाय ॥ ० ॥ ५ ॥ जगमांदि को केहनो न हीं, ते जणी हुं रे नाथ ॥ वीतरागना धरम सा
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