________________
प्रथमपरिवेद. णधर ते हीयमेराखीयो॥ तेदनो रस जेणे चाखी यो, ते हु शिव सुख साखीयो॥ ३॥ धरण। धर राय पद्मावती, प्रनु पार्श्व तणा गुण गाव ती॥ सहु संघना संकट चूरती, नय विमलना वंति पूरती॥४॥ ॥इति ॥ ५ ॥
॥अथ शिखामण सकाय॥ ॥ जीव वारं वं मोरा वालमां, परनारथी प्रीति म जोम॥ परनारीनी संगत नहीं नली, तारा कुलमां लागशे खोड ॥ जीव० ॥१॥जी व आ संसार के कारमो, दीसे आल पंपाल॥ जीव एढवू जाणी चेतजो, आगल मागमे ना खी के जाल ॥ जी० ॥ ॥जीव मात पिता नाइ बेनमी, सह कुटुंब तणो परिवार ॥ जीव वेती वारे सह सगुं, पढें लांबा कीधा जुहार ॥ जीव०॥ ३ ॥ देहली लगें सगो आंगणो, शे रीअ लगे सगीमाय ॥ जीव सीम लगें साजन नलो, पहें हंस एकीलो जाय ॥ जीव० ॥ ४ ॥ जीव जातां थकां नवि जाणीयुं, नवि जाण्यो वार कुवार ॥ जीव गाडं लरीयुं ईधणे, वली खो खरी हांडलीसार ॥ जीव० ॥५॥जीव आठ