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दो ग्रंथो के बाद कविने देवगति को अपनी रचना का विषय बनाया है। यह अद्भुत छंदवद्ध काव्यविद्या हैं जिसमें देवगति के साथ कविने अन्य कई सिद्धांत, इतिहास व तत्त्व की वातों का समावेश किया है। इसमें ८४३ पद है और रचनाकाल है संवत १८७०। ___कविवर्य हरजसरायजी की ये तीनो ही कृतिया श्रुतसागर की विंदु होते हुए भी विराटता से मंडित, लघु होते हुए भी महद् हैं, विशद् है। भाषाः
देवरचना छंदवद्ध काव्यरचना है। जिसमें कुल ८४३ छंद, दोहरे, सर्वेय आदि है। प्रत्येक समाज की अपनी एक सहज भाषा होती है। कवि जिस समाज में रहता है प्रायः उस समाजकी बोलीभाषामें ही वह लिखता है। महाकवि हरजसरायजी के समयमें कुशपूर (पाकिस्तान) समाजकी भाषा में पंजाबी, उर्दू, फारसी, अरवी, आदि भापाओं को अपने में समेटे हुए हिंदी भाषा बोली जाती थी। स्वयं कवि न्याय, व्याकरण, साहित्य और आगममर्मज्ञ होने के साथ संस्कृत, प्राकृत भापाओं पर भी प्रभुत्व रखते थे इसलिए इन छंदो में उक्त भाषाओं का पुट सहजता से दिखाई देता है। जो विपय असहज है उनके लिये कविने पूर्ण संस्कृतनिष्ट अथवा पूर्ण प्राकृतनिष्ट भापाका प्रयोग किया है। जैसे अरिहंतत्व, सिद्धत्व, जिनवाणी महिमा आदि। महत्त्वपूर्ण वात यह है कि विपय के अनुरुप चित्रालंकारमयी, चित्रमयी, संगीतमयी, दार्शनिक, सांकेतिक आदि भापाओं का सुंदर प्रयोग किया है। अनुवादः
(१) प्रस्तुत ग्रंथ देवरचना का हिंदी अनुवाद स्व. पूज्य आचार्य श्री सोहनलालजी म. के शिष्य मुनिश्री ताराचंद्रजी म. संवत् २००९ में कर चुके है। यह अनुवाद देववाणी के नाम से तीन भागो में प्रकाशित है। श्री वर्धमान स्थानकवासी शासन धर्म समिती, भिवानी (हिसार) ने इसका प्रकाशन संवत् २००९-२०१० में किया है।
(२) स्वामी श्री गोविंदरामजी महाराज के शिष्य मुनिश्री छोटेलालजी महाराज(पंचनदीय) ने देवरचना के मूलपाटका संशोधन दो हस्तलिखित प्रतियोंमें किया तथा पदच्छंद स्वयं की बुद्धि के अनुसार किया है।
(३) देवरचना का हिंदी भाषा में सरल, रोचक व स्पष्ट अनुवाद वर्तमान में महासती डॉ. मंजुश्री म. ने अत्यंत श्रम, निष्ठा व समर्पण भावसे किया है। यह अनुवाद जनजन को सहजतया देवगति का विशद ज्ञान कराता हैं। महासती डॉ. मंजुश्री म.ने इस संदर्भमें अनेकानेक आगमिक प्रमाण भी प्रस्तुत किये है। जैसे भगवती सूत्र, कल्पसूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि। देवरचना का हिंदी अनुवाद कर आपने साहित्य भंडारमें अमुल्य निधि भेट की है। आपकी यह श्रुतसेवा चिरस्मरणीय रहेगी।
૧૮ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો