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पूर्ववर्ती वैदिकयुग, स्मृति-श्रुति काल, बौद्धयुग तथा उत्तरवर्ती पुराणकाल में नारी की स्थिति की तुलना तथा समीक्षा करके उन्होंने इस विषय को उचित न्याय देकर नारीसमाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व ही नहीं निभाया, उपकार भी किया है । जैनदृष्टिकोण नारी को सबसे परम उत्कृष्ट प्रभावक तीर्थंकर पद तक पहुँचाने का अधिकार ही नहीं देता किंतु तीर्थंकर पदप्राप्त नारी का दृष्टांत भी प्रस्तुत करता है । उन्होंने इस तथ्य को जन सामान्य तक पहुँचाकर नारी की गरिमा को गौरव प्रदान किया है।
उनका साहित्य अपने आपमें अद्वितीय, अनुपम है | श्री तारक गुरु ग्रंथालय, उदयपुर, कोटारी प्रकाशन, अहमदावाद, श्री सुधर्मा ज्ञानमंदिर, श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान; गढ सिवाना, राजस्थान आदि द्वारा उनके प्रवचन पुस्तकों, शोधग्रन्था, आगम प्रस्तावनाएँ तथा चिन्तनपूर्ण विविध ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं | इनमें उनकी भगिनी साध्वीश्री पुष्पवतीजी तथा अन्तेवासी श्री दिनेशमुनिजी का सहयोग और परिश्रम रहा है। जैनसमाज तथा इतर भी सभी विद्वानों, मुनियों तथा सामान्य पाटकों में उनका साहित्य लोकप्रिय और मानप्रिय है । उनकं २१ प्रवचनों का संकलन उनके पुस्तक 'पर्यों की परिक्रमा' में किया है । इनमें रोचकता और प्रेरकता भी है । छपाईकाम बड़े अक्षरों में होने के कारण पढनेवाले को दिक्कत नहीं होती । इनमें अध्यात्म और इतिहास का संगम है, जो जीवन की समस्याओं को छूते हैं ।
आचार्यश्री के निवंधो का संकलन पुस्तक 'व्यसन छोडो, जीवन वदलो' में है। उनके लेख मननीय और संशोधनात्मक है । उन्होंने अपने मौलिक चिंतन के द्वारा मार्ग से विचलित हुए पथिक को मौलिक दृष्टि मिले इस हेतु से विपय की विशद विवेचना की है । मधुकान्ता दोशीन इनके पुस्तक का गुजराती भापामें अनुवाद किया है | इसमें आचार्य देवेन्द्रमुनिने लिखा है कि वैदिक ग्रंथों में व्यसनों की संख्या अटारह (१८) वतायी गयी है । उनमें से दस (१०) कामज और आट (८) व्यसन क्रोधज हैं | जैनशास्त्रमें व्यसन के मुख्य सात भेद कहे गये हैं और अन्य सभी व्यसन इन सातों में समाहित हो जाते हैं यह भी कहा है । आचार्यश्रीकं मतानुसार इन सात व्यसनों के अलावा अश्लील साहित्य का पटन, चलचित्र देखना, वीडी, सिगारेट जैस अन्य नशीले पदार्थों का सेवन सभी हानिकारक होने से इनकी आदतें व्यसन की सीमा को पार करनेवाली बतायी गयी है । आज के 'फेशन शो' वगैरे को भी उन्होंने फेशन और व्यसन ही कहा है । फेशन और व्यसन का सम्बन्ध चौलीदामन का सम्बन्ध है ऐसा कहकर उन्होंने कहा है कि फेशन के नाम पर जो बदियाँ सभ्य समाज में फैल चूकी है, उनको भी छोडना है । उन्होंने समयोपयोगी मार्गदर्शन भी दिया है । इसलिए वे हमारे लिए पथप्रदर्शक हैं । उनके निबंध इस संसार सागरमें दीवादांडी स्वरूप हैं ।
आचार्यश्री का एक अद्भुत ग्रंथ 'जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण' भगवान પ૮૮ + ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર આરાધકો