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यह बात उनके जीवन में उन्होंने सार्थक कर दिखाई। उनकी विद्या निरन्तर वढते बढते वटवृक्ष बन गई । विद्याध्ययन के साथसाथ ही उन्होंने उपाध्यायश्री पुष्करमुनि के साथ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में विहार किये। इन विहारकाल के दरमियान वे कई विद्वानों और प्रभावशाली सन्तों के सम्पर्क में आये और उनके साथ तत्त्वचर्चाएँ करने के सुहाने अवसर उन्हें प्राप्त हुए। धीरे धीरे वे संघसंगठन, समाजसुधार, शिक्षा सेवा आदि से सम्बन्धित शुभ प्रवृत्तियोंमें अग्रणी रूप से भाग लेने लगे । उनकी बौद्धिकता व कौशल्यता के कारण श्रमणसंघ में नवयुवक देवेन्द्रमुनि एक उदीयमान लेखक, संपादक, विचारक और प्रवक्ता के रूप में प्रतिष्टित हुए । उनके प्रवचन तेज और तीखे न थे और न ही तूफान मचानेवाले थे । पर उनके वचन सीमित शब्दो में अधिक भावों को प्रगट करते थे । हजारों की भीड उनके प्रवचन सुनने उमडती थी। सभी वर्ग के लोग उनके प्रवचन में पधारते थे। उनकी प्रतिभा ही ऐसी थी जो जन-जन को उनकी ओर खींच लाती थी ।
उनके दीक्षागुरु उपाध्यायश्री पुष्करमुनिजी के प्रवचनों की पाँच पुस्तकों का सुन्दर संपादन उन्होंने वाईस वर्ष की छोटी उम्र में किया । ३० वर्ष के होते होते ही संघ की साहित्य शिक्षा समाचारी आदि प्रवृत्तियों का मार्गदर्शन व निरीक्षण करने लगे । मा सरस्वती की उन पर असीम कृपा हुई हो ऐसा प्रतीत होता है । पीस्तालीस वर्ष की उम्र में उन्होंने एक वृहदकाय शोधग्रन्थ का निर्माण किया "भगवान महावीर : एक अनुशीलन' इस ग्रन्थ की अनेक विद्वानों व मुनिवरोंन मुक्त कण्ट प्रशंसा की । इसके बाद उनकी लेखनी अविरत गति से चलती ही रही । उन्होंने विविध विषयों पर अनेक शोधग्रन्थ, अभिनन्दन ग्रन्थ, निबंध व प्रवचनों की करीवन ४०० उत्कृष्ट पुस्तकें लिखी और जैनसाहित्य की उत्तम सेवा की। उनके सारे पुस्तक आध्यात्मिक, धार्मिक व सामाजिक पहलूओं को उजागर करनेवाले, धार्मिक रीतिरिवाजों का सामाजिक मूल्य बतानेवाले मूल्यपरक तथा बहुत ही गहन भावार्थ की सरलता से बतानेवाले रहे हैं ।
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मैंन गुरुभगवंत श्री देवेन्द्रमुनिजी के कभी दर्शन नहीं किये पर उनकी एक एक पुस्तक में वे मेरी नजर समक्ष अलग अलग तस्वीर लिए उभरे हैं । मैंन उन्हें अक्षरदेह से ही जाना है। जैसे जैसे उनके एक एक ग्रंथ में पढती गयी वैसे वैसे उनके प्रति मेरा अहोभाव बढता गया। अभी तो मैं उनकी सारी पुस्तकें नहीं पढ पाई हूँ, फिर भी आज मैं पत्र द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को आपके समक्ष रखने का साहस कर पाई हूँ ।
भगवान महावीर के अतिरिक्त देवेन्द्रमुनि आचार्यने 'भगवान ऋषभदेव', “भगवान पार्श्वनाथ”, “भगवान अरिष्टनेमि एवं कर्मयोगी श्रीकृष्ण आदि ग्रंथो द्वारा उनके जीवनचरित्र पर प्रभाविक सामग्री प्रस्तुत की है । 'जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण' ग्रंथ में उन्होंने समग्र जैनदर्शन का प्रामाणिक व तुलनात्मक अध्ययन
૫૮૪ * ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો