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(२) अलग अलग विभागा-विषयों के लिये भिन्न-भिन्न टाइप योजना । (३) प्राकृत गद्य-पद्यों की संस्कृत में छाया ।
(४) स्पष्टता और सुवांधता के लिये क्लिप्ट-अल्प-प्रसिद्ध और ज्ञातव्य शब्दो पर टिप्पणियाँ ।
(५) भिन्न-भिन्न विषयों का शीघ्र अंदाज आये, सरलता रहे और सुंदरता दिखे इसके लिये अलग-अलग गद्यखण्डो एवं शीर्पको की योजना ।
(६) वाँचन सरलता के लिये गद्य और पद्य का अलग पंक्ति में मुद्रण । (७) श्लाको के लिये एक ही तरह के टाइप । (८) प्रत्येक व्याख्यान का अलग पृष्ट से प्रारंभ । (९) पूर्णाहुतिसूचक वाक्यों के लिय इटालियन टाइप । (१०) आवश्यक सभी श्लोका के उपर छन्दों का नामोल्लेख ।
(११) पारिभापिक और गूढार्थक शब्दों का टिप्पणियों द्वारा सुंदर स्पष्टीकरण तथा मतमतांतरों का उल्लेख ।
(१२) स्थविरावली के अंत में प्राकृत श्लोको के साथ संस्कृत छाया और सूत्रांक ।
___ (१३) चौवासों तीर्थंकरों से संबंधित ३६ प्रकार के तथ्यों का ज्ञान करानेवाला सुंदर परिशिष्ट नं. १ . (१४) ऋपभदव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्थनाथ, महावीर स्वामी एवं सरस्वती आदी सूरिमंत्र अधिप्टायकों सहित श्री गौतमस्वामीजी के ६ multicolor (त्रिरंगी) चित्र ।
इस ५१ फार्म एवं ६१२ पृष्ठों में प्रकाशित इस समृद्ध प्रति में ऐसी छोटीवडी अनेक विशेपतायें है । यह ग्रंथ अध्ययन-अध्यापन वांचन करने वाले मुनिवरों के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है । आगम रत्न-पिस्तालिशी :
अव आचार्यश्री की एक विशिष्ट काव्यकृति का उल्लेख करना चाहूँगी । इसका नाम है 'आगमरत्न पिस्तालीशी । वि.सं. २०२३ संवत १९६७में ४५ आगम का तप करने वालों के लिये उपयोगी ४५ आगम की ४५ दोहो में गुजराती काव्यकृति की रचना की । इस रचना की विशेपता यह है कि एक दोहे में ही आगम का नाम, उसका प्रधान विपय दानों का निर्देश आ जाता है । दोहों में आगमों के सभी नाम प्राकृत भाषा के लिये गये है और जाप के पदों में सभी नाम संस्कृत भाषा के लिये है जिससे आगम के प्राकृत और संस्कृत दोनो नामो की जानकारी उपासक वर्गको मिल सके । संवत्सरी प्रतिक्रमण की सरल विधि :
एव एक अत्यंत उपयोगी कृति ‘संवरी प्रतिकमण की सरल विधि' की वात પર + ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો