________________
साहित्य कलारत्न श्री विजय यशोदेवसूरि
मंजुला गांधी
[પ્રસ્તુત લેખના લેખિકા શ્રી મંજુલાબહેનને પોતાના પતિ શ્રી મહેન્દ્રભાઈ સાથે અવારનવાર સાહિત્યકલારત્ન પ.પૂ. શ્રી વિજ્યયશોદેવસૂરિજી પાસે જવાનું થતું. તેમના સાહિત્યખજાનાથી તેઓ સુપરિચિત હતા. પૂ. યશોદેવસૂરિજીની સાહિત્યકૃતિઓનો પોતાની સરળ અને પ્રાસાદિક શૈલીમાં પરિચય આપવાનો સ્તુત્ય પ્રયત્ન લેખિકાએ આ લેખમાં કર્યો છે.
सं.]
जीवन वृतान्त
उनका जन्म वि. सं. १९७२ पोप सुदी वीज के दिन डभोई, गुजरात में हुआ था । जन्म के पहले ही पिता का वियोग हो गया था और ५ वर्ष की कोमल आयु में ही माता का वियोग हो गया था । दो भाई और दो वहन के वाद पाँचवे संतान के रूप में जीवनके आरंभ से ही उन्हें अनेक विडंबनाओं का सामना करना पडा । पितातुल्य वडे भाई श्री नगीनभाई ने बहुत स्नेहपूर्वक उनका लालन-पालन किया । धार्मिक एवं पारंपरिक शिक्षा के साथ ही उन्हें नृत्य एवं संगीत की शिक्षा भी प्राप्त हुई । वचपन में मंदिर में रात्रि - भावना के समय सुंदर भक्ति नृत्य करते थे । उस समय के विख्यात गायक श्री गुलामरसूलखाँ साहेव के पास संगीत का अभ्यास किया था । अपने जैन समाज में अति प्रचलित सत्तर भेदी पूजा के पदों को वे ३५ भिन्नभिन्न राग-रागिनीयों में अपने मधुर कण्ठ से गाकर सभी को भक्तिरस में आनंदविभोर कर देते थे ।
१५ वर्ष की सुकुमार अवस्था में वि.सं. १९८७ वैशाख सुदी तीज के दिन पालिताणा के पास कदंवगिरि में वे दीक्षित हुए
तीन-तीन गुरुदेव, प. पू. श्री मोहनसूरि महाराज साहेव, प. पू. श्री प्रतापसूरि महाराज साहेव एवं प. पू. श्रीधर्मसूरि महाराज साहेब के कृपापात्र वने ।
उन्होंने निरंतर तप, साधना, स्वाध्याय एवं अध्ययन से जैन आगम, प्रकरण ग्रंथ, कर्मग्रंथ आदि के साथ ही व्याकरण, न्याय, दर्शन, साहित्य, ज्योतिप आदि का भी तलस्पर्शी अभ्यास किया । उनकी असाधारण प्रतिभा और विनम्रता के कारण वे कसोटी पर चढे हुए शुद्ध सोने की तरह निखर उठे ।
साहित्य कलारत्न श्री विजय यशोदेवसूरि + ५१५