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________________ समरसिंह सलक्षण " सार्थवाह ! मैं आपका असीम उपकार मानता हूँ कि आपने ऐसे उत्तम नगरका मुझे विशेष परिचय कराया | अब मैं उस नगर को देखनेके लिये परम उत्सुक हूँ । मैं कुछ भी विलम्ब नहीं करूँगा | और आपके साथ चलना तो मेरे लिये और भी अधिक उपयुक्त होगा । 1 "3 ५६ इस प्रकार कह कर सलक्षणने पल्हनपुर जाने के लिये तैयारी की । यात्रा के लिये आवश्यक सामग्री एकत्रित की गई । जब सलक्षण खाने हुए तो रास्ते में कई शुभ शकुन हुए । इससे श्रेष्टिवर्य का उत्साह और भी परिवर्धित हुआ । निर्विघ्नतया यात्रा समाप्त कर जब सलक्षण पल्हनपुर नगर में प्रविष्ट हुए तो पुनः शुभ शकुन दृष्टिगोचर हुए जो भावी मंगल लाभ की सूचना दे रहे थे । प्रसन्नचित्त सलक्षण को शकुनों के फलस्वरूप नगर में जाते ही श्री पार्श्वनाथ भगवान की रथयात्रांके वरघोड़े के दर्शन हुए । सलक्षणने वरघोड़े में सम्मिलित होकर सारे नगर के जिनालयों के दर्शन करने का प्रथम लाभ लिया । उस समय एक सामुद्रिक विद्याका विशेषज्ञ श्रेष्टिवर्य के चहरे को देखकर भविष्यवाणी कहता है कि यदि आप इस नगर में आ बसेंगे तो आपको धन, धान्य, और सुख पुत्र की प्राप्ति होगी । आपके वंशज संघ - नायक होंगे । आपकी संतान धर्मिष्ट १ तदन्तर्विशतस्तस्य श्रीवामेयजिने शितुः । रथः संभुखमायातः ससङ्घेऽथ पुवेऽभ्रमत् ॥ ७६ ॥ ( ना० नं० )
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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