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________________ समरसिंह २४० कुलदेवत सचिया वि भुजि अवतरइ । सूहव सेस भरई तिलकु मंगलु करई ॥ ३ ॥ पोस वदि सातमि दिवसि सुमुहुत्तिहिं । आदिजिणु देवालए ठविउ सुहचित्तिहिं । धम्मघोरी य धुरि धवल दुइ जुत्तया । कुंकुमपिंजरि कामधेनुपुत्तया ॥ ४ ॥ इंदु जिम जयरथि चडिउ संचारए । सहवसिरि सालिथालु निहालए । जा किउ हयवरो वसंहु रासिउ हउ । कहइ महासिधि सकुनु इहु लद्धउ । आगलि मुनिवरसंघु सावयजणा । तिलु न पिरइ तिम मिलिय लोय घणा ॥ ५ ॥ मादलवंसविणाझुणि वजए । गुहिरभेरीयरवि अंबसे गजए । नवयपाटणि नवउ रंगु अवतारिउ । सुषिहि देवालउ संखारी संचारिउ ॥ ६ ॥ घरि बयसवि करि के वि समाहिया । समरगुणि रंजिउ विरलउ रहियउ । जयतु कान्हु दुइ संघपति चालिया । हरिपालो लंदुको महाधर दृढ थिया ।। ७ ॥
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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