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________________ ऐतिहासिक प्रमाण ! મ पट्ट हमारे चरितनायक के पुत्र सगरने अपने मातापिता के श्रेय के अर्थ करवाई थी जो इस समय खंभात के चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय में विद्यमान है (देखो - बुद्धि० भा. २ रा ले. नं. १६० ) भिन्न भिन्न गच्छों के आचार्य वि. सं. १३७१ में शत्रुञ्जय तीर्थोद्धार यात्रा प्रतिष्टा के प्रसंगपर देसलशाह के संघ में एकत्र हुए भिन्न भिन्न आचार्यों के नामों का उल्लेख प्रबंधकार कक्कसूरिने किया है जिनमें से :पासड़ (पार्श्वदच ) सूरि 66 समरारास " के रचयिता निवृत्तिगच्छ के अंब ( माम्र ) देवसूरि की प्रतिष्टित मूर्त्तियों आदि के लेखों का उल्लेख अभी तक कहीं देखने में नहीं आया है । किन्तु उनके गुरु पासड़सूरि द्वारा वि० सं० १३३० में प्रतिष्टित आदिनाथ की मूर्त्ति वीजापुर में पद्मावती के मन्दिर में मौजूद है ( वीजापुर वृतान्त और बुद्धिसागर भाग १ लेख नं० ४१६ ) निवृत्ति के इन्हीं पासढ़ (पार्श्वदत्त) सूरिद्वारा वि. सं. १३८ ( ४ ) ८ में प्रतिष्ठित पद्मप्रभ बिंब बड़ौदे में मनमोहन पार्श्वमाथस्वामी के मन्दिर में स्थित है । ( इसका उल्लेख बुद्धि० भाग० २ रा लेख नं. ८१ में हुआ है । ) विनयचन्द्रसूरि वि. सं. १३७३ में शुभचन्द्रसूरिद्वारा प्रतिष्टित की हुई
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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