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________________ समर सिंह. २०२ हमारे चरितनायक वहाँ पधारने को उत्सक हुए। कामदेव सदृश समरसिंह भेंट लेकर महीपालदेव की माझा लेने के लिये गये 1 संतुष्ट हो कर महीपालदेवने स्वयं समरसिंह को सुपद वस्त्र सहित घोड़े और सरोपाव दिया । कर्पूर का व्यवहार नमक की तरह साधारण था । चारों और श्रवणप्रिय संगीत का निनाद सुनाई देता था । चलता हुआ १ यह महीपाल, राखेगार के पीछे गद्दीनशीन मंडलिक के पुत्र नोषण का पुत्र था । मंडलिक के समय में दिल्ली के बादशाह सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजीने भलफखान को गुजरात प्रान्तपर आक्रमण करने के लिये भेजा था । सोमनाथ का मन्दिर जो ईसवी सन १०२४ में मुहम्मद गजनवी द्वारा तोड़ा जाकर फिर सुधरवाया गया उसे अलफखानने तोड़ डाला । और इसके अतिरिक्त घोघा और माधवपुर के बीच के काठे के प्रदेश को भी अपने अधिकार में उसने कर लिया। कहा जाता है कि उस समय राजा मंडलिकने अलफखान की टुकडो को हरा दी थी। किन्तु ऐसा होना संभव था कि अलफखान द्वारा भेजे हुए किसी हाकिम हो को हराया होगा | चाहे जैसा हो परन्तु रेवती कुन्ड ऊपर के लेख में मंडलिक को मुगल को हराने वाला लिखा है । गिरनार पर के एक लेख में जिक्र है कि उसने श्री नेमीनाथ स्वामी के मन्दिर को खोने के पत्रों से सुशोभित किया था। मांडलिक के पीछे राजा नोंघण चतुर्थ गद्दीपर आरूढ हुआ । गिरनार के लेख में वर्णन है कि वह महा शूरवीर योद्धा था । नोंघण दो वर्ष राज्य कर पंचत्व को प्राप्त हुआ । अतः उसका पुत्र महोपाल गद्दोपर बैठा । महीपालसोमनाथ के मन्दिर का जोर्णोद्धार कराने तथा अन्य धार्मिक क्षेत्रों में बहुतसा द्रव्य खर्च किया । इसका राज्य काल ७० वर्ष रहा। इसके बाद में इसका पुत्र राखेंगार ईस्वी सन् १३२५ में गद्दो पर बैठा जिसने सन् १३५१ तक राज्य किया I काठियावाड़ सर्व संग्रह के पृष्ठ ४०० और ४०१ से ( १८८६ की आकृति )
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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