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________________ ૧૨૨ / ડેલહા વિયંશિકા ટીકા'ના હિંદીમાં સારસહિત કરેલા સાંપાદનમાં શ્રી યશવિજયજી માટે નીચે મુજ્બ અભિપ્રાય દર્શાવ્યા છે 'वाचक यशोविजयका परिचय इतनेहीमें कर लेना चाहिए कि उनकी सी समन्वय शक्ति रखनेवाला, जैनजैनेतर मौलिक ग्रंथोका गहरा दोहन करनेवाला, प्रत्येक विषयकी तहतक पहुँचकर उस पर समभावपूर्वक अपना स्पष्ट मन्तव्य प्रकाशित करनेवाला, ज्ञास्त्रीय व लौकिक भाषामें विविध साहित्य रचकर अपने सरल और कठिन विचारोंको सब जिज्ञासु तक पहुँचानेकी चेष्टा करनेवाला और संप्रदायमें रहकर भी संप्रदाय के बंधनकी परवा न कर जो कुछ उचित जान पड़ा उस पर निर्भयतापूर्वक लिखनेवाला केवल श्वेताम्बर, दिगंबर समाजमें ही नहीं बल्कि जैनेतर समाजमें भी उनका सा कोई विशिष्ट विद्वान अभी तक हमारे ध्यानमें नहीं आया । पाठक स्मरणमें रक्खे, यह अत्युक्ति नहीं हैं । हमने उपाध्यायजी के और दूसरे विद्वानों के ग्रंथो का अभीतक जो अल्प मात्र अवलोकन किया है उसके आधार पर तोल-नाप कर उपरके वाक्य लिखे हैं । निःसन्देह श्वताम्बर और दिगंबर समाजमें अनेक बहुश्रुत विद्वान हो गये हैं । वेदिक तथा बौद्ध सम्प्रदाय में भी प्रचंड विद्वानोंकी कमी नहीं' रही है; खास कर वैदिक विद्वान तो सही से उच्च स्थान लेते आये हैं; विद्या मानो उनकी बपोती ही है; पर इसमें शक नहीं कि कोई बौद्ध या कोई वैदिक विद्वान आजतक औसा नहीं हुआ है जिसके ग्रन्थके अवलोकनसे यह जान पडे कि वह वैदिक या बौद्धशास्त्र के उपरांत जैन शास्त्रका भी वास्तविक गहरा और सर्वव्यापी ज्ञान रखता हो । इसके विपरीत उपाध्यायजी जैन थे इस लिए जैनशास्त्रका गहरा ज्ञान उनके लिए सहज था पर उपनिषद, दर्शन आदि वैदिक ग्रन्थोका तथा बौद्ध ग्रन्थोका इतना वास्तविक परिपूर्ण और स्पष्ट ज्ञान उनकी अपूर्व प्रतिभा और काशी सेवनका ही परिणाम है । ' ખીજે એક સ્થળે. એમણે લખ્યું છે : ‘તેઓ મસંસ્કારસંપન્ન, -
SR No.023286
Book TitlePadileha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1979
Total Pages306
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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