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________________ ७८ जैन कथा कोष मोदक में से एक रत्न निकला तो विजय ने उसे चमकीला पत्थर ही समझा। वह मणि को क्या जानता था? उसको लेकर वह एक हलवाई की दूकान पर गया। हलवाई मणि को देखने लगा। अचानक मणि उसके हाथ से छूटकर पानी में गिर गई। तुरन्त पानी दो भागों में बँट गया। हलवाई चमत्कृत रह गया। वह समझ गया कि यह जलकान्त मणि है, क्योंकि आज ही प्रात:काल उसने राजा श्रेणिक की घोषणा सुनी थी कि 'जिसके पास जलकान्त मणि हो, वह हमें दे दे। हम उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर देंगे और सौ गाँव ईनाम भी देंगे।' इस घोषणा का कारण यह था कि श्रेणिक के प्रिय हाथी सेचनक को एक ग्राह ने पकड़ लिया था, और अनेक उपाय करने पर भी वह उसे छोड़ नहीं रहा था। तब अभयकुमार ने युक्ति सोची-जलकान्त मणि के द्वारा पानी को दो भागों में विभाजित कर दिया जाए। बीच में मगर के आसपास सूखा होने से उसकी शक्ति कम हो जाएगी और सेचनक उसकी पकड़ से छूट जाएगा। हलवाई को इनाम के साथ राज-जामाता बनने का भी लालच था। उसने विजय को भरपेट मिठाई खिलाकर विदा किया और स्वयं मणि लेकर राजा श्रेणिक के पास जा पहुँचा। अभय की युक्ति काम कर गई, सेचनक हाथी ग्राह की पकड़ से छूट गया। ___ अब राजा श्रेणिक को अपना वचन पूरा करना था। उसने देखा कि हलवाई बूढ़ा खूसट है तो बहुत निराश हुआ। अपनी फूल-सी बेटी को इस कब्र में पाँव लटकाए बूढ़े के पल्ले कैसे बाँध दे? उसने इस समस्या के समाधान के लिए अभय से फिर युक्ति पूछी। अभय ने भी उचित उपाय करने का वचन दिया। ___इधर संध्या के समय जब जयश्री अपने पति कृतपुण्य को भोजन करा रही थी तो उसने उन्हीं शेष तीन मोदकों में से एक मोदक परोसा। मोदक तोड़ने पर उसमें से एक रत्न निकला। जयश्री चकित रह गई। उसने शेष दोनों मोदक भी तोड़ डाले। उनमें भी एक-एक रत्न निकला। कृतपुण्य भी चकित रह गया। जयश्री समझी की पतिदेव इस तरह छिपाकर अपना अर्जित धन लाये हैं। फिर भी उसने पूछा तो कृतपुण्य ने भी यही कह दिया कि ये रत्न मेरा उपार्जित धन हैं। जयश्री संतुष्ट हो गई। लेकिन तुरन्त उसके मस्तिष्क में यह बात आयी कि विजय के मोदक में भी रत्न निकला होगा, वह कहाँ गया? उसने यह बात पति
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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