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________________ बताकर कथा को उपादेय तथा शेष को हेय बताया है। उपादेश्य कथा के भी विषय, शैली, पात्र, भाषा आदि के आधार पर अनेकानेक भेद-उपभेद किये गये हैं। विषय की दृष्टि से अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा-चार प्रकार की कथा है। धर्मकथा के आक्षेपिणी कथा, विक्षेपिणी कथा, संवेदना कथा और निर्वेदनी कथा-ये चार भेद हैं। शैली की दृष्टि से पांच प्रकार हैं-सकलकथा, खण्डकथा, उल्लावकथा, परिहासकथा और संकीर्णकथा। पात्रों की दृष्टि से भी दिव्यकथा, स्त्रीकथा, मानुषकथा, मित्रकथा आदि भेद बताये हैं। __ जैनाचार्यों ने कथा सिर्फ समय गुजारने या मात्र मनोरंजन के लिए नहीं लिखी, उनके सामने कथा में धर्म, तत्त्वज्ञान, व्रत, उपवास, संयम, ज्ञान, कर्म-फल-भोग आदि का मर्मोद्घाटन कर जीवनदर्शन स्पष्ट करने का उद्देश्य रहा है। इन कथाओं में नीति, सदाचार, परोपकार, सेवा, तप, क्षमा, दया, त्याग आदि की विविध भंगिमाएं छिपी हैं, साथ ही सामाजिक एवं राजनीतिक आदर्श, व्यवहार और परम्परा, रूढ़ि आदि का भी स्वस्थ-स्पष्ट चित्रण है। इसलिए मैं कह सकता हूं कि जैन मनीषियों ने जिस विपुल कथा-साहित्य की सर्जना की है, उसका उद्गम उदात्त जैन चिन्तन है, और प्रवाह आर्दशोन्मुखी है। जैन कथाओं में घटना-बहुलता भी है, साथ ही पात्रों के आन्तरिक जगत्-भावलोक का निर्मल दर्शन भी है। आज का कहानीकार जहां पात्रों के मनोविश्लेषण एवं अन्तर्द्वन्द्व के चित्रण में ही अपनी सफलता मानता है, वहां प्राचीन जैन कथाकार पात्र को सिर्फ निमित्त मानकर उसका जीवन-दर्शन स्पष्ट करता है। उनकी अवतारणा अध्यात्म, नीति व रदाचार के नियमों की परिपुष्टि व सामाजिक-राजनीतिक विशुद्धि को लक्ष्य में रखकर की गई है। जैन कथा की यही अपनी विशेषता व मौलिकता है, जो उसे अन्य कथा-साहित्य से कुछ विशिष्ट बनाती है। रचना की दृष्टि से भी जैन कथा-साहित्य अत्यन्त समृद्ध व विशाल है। छोटे-बड़े हजारों कथा-ग्रन्थों का पुष्पहार जैन साहित्य-श्री को अलंकृत कर रहा है। कथा-कोश की परम्परा भी जैन-साहित्य में काफी प्राचीन है। कुछ प्रसिद्ध कोशों के नाम यहां सूचित करना चाहूंगा बृहत्कथा कोश (आचार्य हरिषेण)-रचना वि. सं. 955
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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