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स्वतः
बचपन से ही कथा-साहित्य में मेरी विशेष रुचि है। अब तक अपने स्वयं के उपयोग एंव स्मरणार्थ जो बहुबिध कथा-कहानियां-चुटकुले संकलित किये होंगे, लिखे होंगे, इसका सही लेखा-जोखा तो नहीं, पर अनुमानतः तीन हजार से कुछ अधिक ही हैं। ___ जैसे नदी का निर्मल जल और सूर्य का प्रखर प्रकाश सार्वजनिक होता है। इसमें देश, काल, पात्र आदि का भेद नहीं किया जा सकता, वैसे ही कथा-कहानी में किसी परम्परा, मत या सम्प्रदाय की कोई भेद-रेखा खींचना सम्भव नहीं है। कथा का कथ्य स्वयं में एक बीता हुआ सत्य होता है, प्रेरणा होती है, जीवन का कुछ अनुभव और कुछ आदर्श होता है, इसलिए उसकी समग्रता जीवनव्यापी हो जाती है।
पाठक पूछेगे-फिर इस कथा कोष का नाम 'जैन कथा कोष' क्यों रखा गया है?
प्रश्न ठीक है। उत्तर सिर्फ इतना ही है कि जल जिस प्रकार स्वरूप में एक होते हुए भी अपने उद्गम-स्थान की अपेक्षा से विभिन्न नामें से पुकारा जाता है-गंगोत्री से उद्भूत होने वाली गंगा का जल 'गंगाजल', यमुनोत्री की धारा में प्रवाह-मान यमुना का जल 'यमुनाजल', सरोवर के रूप में स्थिर जल 'सरोवर जल' और भूमिगत निर्झर से प्राप्त होने वाल 'कूप-जल' कहा जाता है, वैसे ही साहित्यिक स्रोत (उद्गम स्थल) की दृष्टि से ही जैनकथा-साहित्य, बौद्धकथा-साहित्य, वैदिक-कथा-साहित्य आदि नामों से पहचाना जाता है। उद्गम स्रोत, किंचित् दृष्टिकोण व उद्देश्य की गहनता के कारण ही पूर्व के विशेषण हैं, बाकी जीवनधर्मिता की दृष्टि से ये कथाएं आज भी सार्वजनीन, सार्वदेशीय है। ___ जैनाचार्यों ने कथा-साहित्य पर बहुत ही गहन व विस्तारपूर्वक विवेचना की है, और सर्जना भी की है। अकथा, विकथा और कथा-ये तीन भेद